आलोक पुराणिक
दिल्ली के स्कूलों का एक अघोषित उद्देश्य यह भी है कि पेरेंट्स को भी प्रोग्रेस, ज्ञान और विद्या के पथ पर अग्रसर करते रहे हैं। संस्कृत के एक श्लोक का आशय है कि विद्यार्थिनो को कुत सुख यानी विद्यार्थियों को सुख कहां। सो दिल्ली के स्कूल पेरेंट्स के सुख हरकर उन्हे भी नयी नयी विद्या सीखने की ओर अग्रसर करते हैं। इस उद्देश्य के लिए बच्चों को ऐसे ऐसे समर होलीडे होमवर्क दिये जाते हैं, जिनसे पेरेंट्स सुख चैन भूलकर ज्ञान प्राप्ति में लग जाते हैं।
रुसी भालू के क्रिया कलाप को मय फोटू पेश करो-एक स्कूल में यह होमवर्क दिया गया था।
गजब दिन आ गये हैं, रूस के भालू रुस के नेताओँ से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं, इंडियन स्कूलों के लिए। एक जमाना था , जब रुस के नेताओँ के बारे में इंडिया में खूब पढ़ाया जाता था। अब भालू आ गये हैं, उनकी जगह।
एक स्कूल में होमवर्क था मध्यकाल के महान लोगों के बारे में बताओ।
मैंने स्टूडेंट से कहा-अकबर के बारे में लिख दो।
उसने पूछा-क्या एचिवमेंट थे अकबर के, कितने चुनाव जीते थे, अकबर ने।
चुनाव तो एक भी ना जीता अकबर ने।
फिर काहे का एचिवमेंट, एक चुनाव जीतकर दिखायें, तब ना मानें एचिवमेंट। चुनाव आयोग को खर्च का हिसाब देने में इत्ती इंटेलीजेंस,महानता खर्च हो जाती है कि बाकी की महानता के लिए टाइम नहीं बचता। अकबर नहीं चलेंगे, कोई दूसरे महान बताइये।
पेरेंट्स के पास भी जवाब नहीं हैं।
मुझे लगता है कि जल्दी में दिल्ली में होमवर्क की वर्कशापों का आयोजन कराया जाना चाहिए, जिनमें पेरेंट्स को यह समझाया जाये कि आखिर कैसे होमवर्क करवाया जाये।
इस तरह की वर्कशापों के कुछ सीन मुझे अभी से दिखायी पड़ रहे हैं-
सारे बच्चे मैदान में तरह तरह के खेल खेल रहे हैं-पेरेंट्स वर्कशाप में जुटकर होमवर्क कर रहे हैं।
देखिये, आपने होमवर्क में जो लगाया है, वह अफ्रीकन भालू है, रुस का भालू नहीं-होमवर्क वर्कशाप में एक इंस्ट्रक्टर एक पेरेंट को डांट रहा है।
भालू भालू में फर्क कैसा। रुस का हो या अफ्रीका का हो।
नहीं होमवर्क अगर रुस के भालू का है, तो रूस का भालू लाइये।
एक काम कर सकते हैं क्या भालू के पीछे रुस का झंडा फहरा दें, जिससे लगे कि मामला खालिस रुसी है।
देखिये, भालू अभी इस लेवल पर नहीं आये हैं कि खुद को रुसी या अफ्रीकन के हिसाब से डिवाइड करें। भालू ग्लोबल होते हैं।
पर यह बात टीचरों की समझ में क्यों नहीं आती।
क्योंकि टीचरें भालुओँ जितनी समझदार नहीं होतीं।
तो टीचरों को भालुओँ जितना समझदार कैसे बनाया जाये।
देखिये, इस बात को इस वर्कशाप में नहीं समझाया जा सकता। आप तो सिर्फ यह समझिये कि वैसा भालू बनाना है, जिसे टीचर रुसी माने।
रुसी भालू दिखाने से बच्चों का ज्ञान कैसे बढ़ेगा, यह साफ नहीं है। वैसे अब होनहार बच्चे सीधे अमेरिका जाते हैं, रुस नहीं। तो अमेरिकन भालू दिखाये जायें, तो बेहतर।
एक बच्चे को प्रोजेक्ट मिला है-भारतीय मंदी के असर बताइये।
पिता साफ्टवेयर इंजीनियर है-कह रहा है कि अजी हम तो अमेरिकन मंदी के लपेटे में बेरोजगार हो लिये। और ये भारतीय मंदी के पीछे पड़े हुए हैं।
बात तो उसकी भी सही है।
ग्लोबल हल्ले में अमेरिकन मुहल्ले की गतिविधियों का असर नेहरु प्लेस की नौकरियों पर हो रहा है। सो सारे समर-विंटर होमवर्क अमेरिका पर फोकस होने चाहिए।
चलूं, उस पेरेंट की हेल्प करने के लिए, उसे मंदी का अमेरिकन डागी पर असर-इस विषय पर प्रोजेक्ट बनाना है।
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